तीन महीने पहले सरकार में ऐसा एक भी व्यक्ति मिलना मुश्किल था जो जीएसटी को क्रांतिकारी सुधार न बता रहा हो. सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता यह मान रहे थे कि भारत का अधिकांश कारोबार कर दायरे से बाहर है, कम से कम रियायतों से और ज्यादा से ज्यादा सख्ती वाले जीएसटी के जरिये उसे साफ सुथरा बनाया जाएगा. इससे महंगाई कम होगी, सरकार की आमदनी में इजाफा होगा विकास दर तेज गति से आगे बढ़ सकेगी. एक जुलाई मध्यरात्रि में यही जीएसटी देश के इतिहास सबसे बडा टैक्स सुधार था.
तीन महीने बीतने के बाद जीएसटी अपने सभी बुनियादी सुधारवादी प्रावधानों को छोड़ कर सर के बल खड़ा हो गया. वजहों को अंदाजना मुश्किल नहीं है. टैक्स बेस से वोट बेस ज्यादा कीमती है. जमीन खिसकने से सरकार इतनी डरी कि जीएसटी में वह बदलाव भी कर दिये गए जिनकी जरुरत नहीं थी. जीएसटी अब पूरी तरह लुंज पुंज है इससे ज्यादा टैक्स के अलावा जो भी प्रमुख सुधार थे अब वापस हो गए हैं.