(Hindustan)
जब केंद्र सरकार पेट्रोल व डीजल को बेतहाशा सब्सिडी देती थी तब भी यही हाल था और अब जबकि इन दोनों उत्पादों की कीमतें बाजार के हवाले हैं तब भी हालात वैसे ही हैं। यानी तब भी महंगे होते क्रूड की वजह से सरकार की मुसीबत बढ़ जाती थी और आज भी सरकार वैसी ही पसोपेश में है। कर्नाटक चुनाव के एकदम सर पर होने की वजह से सरकार घरेलू बाजार में महंगे होते पेट्रोल व डीजल से ज्यादा दुविधा में है। लेकिन सरकार को असली चुनौती आर्थिक मोर्चे पर दिख रही है। जानकार मान रहे हैं कि निर्यात की सुस्त रफ्तार और महंगे क्रूड का तालमेल सरकार के राजकोषीय ताने बाने को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह एक वजह है कि वित्त मंत्रालय अभी पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने के पक्ष में नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की मजबूत होती कीमतों की वजह से देश में पेट्रोल पिछले 55 महीनों के उच्चतम स्तर (दिल्ली-74.50 रुपये प्रति लीटर) पर है तो डीजल की कीमत 65.75 रुपये प्रति लीटर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी है। हालात की समीक्षा के लिए सोमवार को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सरकारी तेल कंपनियों के प्रमुखों के साथ बैठक की है। सरकारी तेल कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि आम जनता को राहत देने के लिए अभी दो ही विकल्प सामने है। पहला, वित्त मंत्रालय उत्पाद शुल्क को घटाने के लिए तैयार हो जाए। दूसरा, तेल कंपनियों को ही कुछ मूल्य वृद्धि का बोझ वहन करना पड़े। वैसे दूसरा विकल्प बहुत हद तक तेल कंपनियां आजमाने भी लगी है।
अप्रैल, 2018 में अभी तक ओपेक देशों के क्रूड की कीमतों में 5.6 फीसद का इजाफा हुआ है जबकि घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमत 0.5 फीसद और डीजल में 1.4 फीसद का ही इजाफा हुआ है। शेयर बाजार में पिछले एक महीने में आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल के शेयरों की कीमत में क्रमश: 7.9 फीसद, 12 फीसद और 15.7 फीसद की गिरावट के लिए भी इसे एक वजह माना जा रहा है।