40 साल बाद एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में सिंगल जज बेंच

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(Hindustan)

उच्चतम न्यायालय ने लगभग 40 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट में एकल जज पीठ शुरू करने का फैसला किया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 में संशोधन कर इसका रास्ता साफ कर दिया। शीर्ष अदालत में शुरू होने वाली एकल जज पीठें जमानत (सीआरपीसी की धारा 437, 438 और 439) के ऐसे मामलों में सुनवाई करेगी जिनमें सात वर्ष तक की सजा का प्रावधान हो। यह पीठ मुकदमे एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित (सीआरपीसी की धारा 406 तथा सीपीसी की धारा 25) करने के मामले भी सुनेगी। साथ ही ऐसे मामले भी सुनेंगी जिन्हें मुख्य न्यायाधीश समय समय पर अधिसूचित करेंगे।

एकल पीठ की शुरुआत दोबारा की गई है। इससे पूर्व 80 के दशक में शीर्ष अदालत में एकल पीठें हुआ करती थी। एकल पीठ में बैठे जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को स्टे किया था। हाईकोर्ट का यह फैसला राजनारायण के पक्ष में था, जिसमें हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा निर्वाचन को निरस्त कर दिया था। इसके बाद ये एकल जज पीठें बंद कर दी गई और सुप्रीम कोर्ट खंडपीठों या दो से अधिक जजों की पीठ में बैठने लगा। एकल जज पीठें हाईकोर्ट में होती हैं जो आपराधिक मामले सुनती हैं।  सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 145 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया। इसके नियम 1 और आर्डर छह में यह शर्त जोड़ी गई है कि एकल जज पीठ जमानत के मामलों में दायर विशेष अनुमति याचिकाएं, स्थानांतरण केस जिन्हें मुख्य न्यायाधीश सौंपेंगे, सुनवाई करेगी।

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