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मोदी को लेकर दो तरह की राजनीतिक कहानियां कही जा रही हैं। एक मोदी को हराने वाली कहानी दूसरी मोदी के दुर्जेय होने की कहानी! मोदी हार रहे हैं, ऐसा कहने वालों का कहना है कि पांच साल में भाजपा के शासन से नाना कारणों से तंग आए लोग इस बार मोदी को हराने वाले हैं। वे कहते हैं कि 2019 का बरस 2014 वाला नहीं है, तब कांग्रेस का भ्रष्टाचार टारगेट पर था और ‘अच्छे दिन आएंगे’ का वायदा था, लोग झांसे में आ गए, लेकिन अब मोदी की लफ्फाजी की कलई खुल चुकी है, काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है।
कुछ आंकड़ानवीस बताते हैं कि मोदी भले खूब लोकप्रिय हों, लेकिन उनके सांसदों पर लोगों का भरोसा नहीं है, इसलिए मोदी की लोकप्रियता के बावजूद वोट भाजपा सांसद को मिले यह जरूरी नहीं। इसी आधार पर आंकड़ानवीस कहते हैं कि इस बार भाजपा को न्यूनतम ‘छिहत्तर’ या ‘छियानबे’ या ‘एक सौ छब्बीस’ और अधिक से अधिक ‘पौने दो सौ सीटें’ ही मिल पा रही हैं, जबकि कांग्रेस सर्वाधिक सवा दो सौ से लेकर डेड़ सौ सीट तो जीत ही रही है।
कुछ ‘गणित विशेषज्ञ’ राज्यों में बने गठबंधनों के ‘वोट-गणित’ के हिसाब से बताते हैं कि इतने वोट सपा के इतने बसपा के बराबर इतने गठबंधन के यानी कि यूपी में भाजपा गई समझो। हर राज्य में स्थानीय क्षत्रप अपनी ताकत बनाए रखने के लिए अस्थायी गठबंधन बनाकर अपने वोट एक दूसरे को ट्रांसफर कर मुख्य स्पर्धी यानी भाजपा को हराना चाहते हैं। और अपनी जीती सीटों के हिसाब से चुनाव के बाद हिसाब-किताब करना चाहते हैं।