(DJ)
राजनीतिक मोर्चे पर तो सरकार के समक्ष हाल फिलहाल कोई चुनौती पैदा होती नहीं दिखती, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगा होता कच्चा तेल एक ऐसी चुनौती है, जिससे राजनीतिक तौर पर समस्या खड़ी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल यानी क्रूड की कीमत पिछले तीन साल के उच्चतम स्तर 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है। ऐसे में सरकार को दोहरे स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
एक तरफ राजकोषीय संतुलन बनाना होगा, दूसरी तरफ चुनावी साल में आम जनता को महंगे डीजल व पेट्रोल से भी बचाना होगा। यही वजह है कि आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस चुनौती को लेकर सरकार को सतर्क किया गया है।
वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने महंगे होते क्रूड को आने वाले वर्षो में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बताया है। उनका कहना है कि क्रूड की कीमत में अगर 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी होती है, तो जीडीपी की वृद्धि दर में 0.3 फीसद तक की कमी हो सकती है। इस हिसाब से पिछले तीन साल में अकेले महंगे क्रूड की वजह से विकास दर पर 0.9 फीसद तक का दबाव पड़ा है।