(Hindustan)
क्रूड ऑयल 2014 के बाद पहली बार 100 डॉलर प्रति बैरल की तरफ पहुंच चुका है। इससे जल्द ही आपको झटका लग सकता है और तेल की कीमतों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी संभव है। क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल ग्रोथ को कम करने के साथ मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है। यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व के साथ दुनिया भर के केंद्रीय बैंको के लिए एक चिंताजनक है क्योंकि बैंक अभी भी अर्थव्यवस्था को महामारी के दबाव से उबारने की कोशिश कर रहे हैं। G-20 के वित्त प्रमुख इस साल पहली बार इस सप्ताह बैठक करने जा रहे हैं और इसमें मुद्रास्फीति सबसे प्रमुख चिंता का विषय है। कीमतों में उछाल से ऊर्जा निर्यातकों को लाभ होता है। अर्थव्यवस्थाओं पर तेल की कीमत का प्रभाव पहले से ज्यादा होगा। इससे कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों के बिल में बढ़ोतरी होगी, खाने के साथ, परिवहन समेत तमाम चीजों की कीमतें बढ़ जाएंगी। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के शॉक मॉडल के अनुसार, इस महीने के अंत तक कच्चे तेल के 100 डॉलर पहुंचने से यूएस और यूरोप में मुद्रास्फीति लगभग आधा प्रतिशत बढ़ जाएगी।
जेपी मॉर्गन चेज़ एंड कंपनी ने चेतावनी दी है कि 150 डॉलर प्रति बैरल तक की तेजी वैश्विक ग्रोथ को लगभग रोक देगी और मुद्रास्फीति को 7% से अधिक तक पहुंचा देगी, जो कि अधिकांश मौद्रिक नीति निर्माताओं द्वारा लक्षित दर से तीन गुना से अधिक है। ड्यूश बैंक एजी के इकनोमिक रिसर्च हेड पीटर हूपर का कहना है कि तेल का झटका अब व्यापक रूप से मुद्रास्फीति की समस्या है। परिणाम स्वरूप यह वैश्विक ग्रोथ विकास के धीमा होने का एक एक महत्वपूर्ण कारण है। क्रूड ऑयल की कीमत एक साल पहले की तुलना में लगभग 50% अधिक है, यह कमोडिटी की कीमतों में व्यापक रैली का हिस्सा है और इससे प्राकृतिक गैस पर भी असर पड़ा है। लोखड़ौन के बाद मांग बढ़ने, रूस और यूक्रेन के बीच भू-राजनीतिक तनाव और तनावपूर्ण सप्लाई चैन के कारण कीमतों में तेजी जारी है। सिर्फ दो साल पहले, तेल की कीमतें कुछ समय के लिए शून्य से नीचे आ गई थीं।