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लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों में जातियों को सहेजने की होड़ लग गई है। भाजपा इसमें सबसे आगे है। संगठन से लेकर सरकार तक जातीय समीकरण दुरुस्त किये जा रहे हैं लेकिन, प्रमुख विपक्षी दलों के साथ ही छोटे दल और जातीय क्षत्रपों ने भी अपनी गोटियां बिछानी शुरू कर दी है। इस बीच भाजपा ने हर जिले से सौ कार्यकर्ताओं के नाम मांगे हैं, जिन्हें जिले से लेकर प्रदेश तक महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर समायोजित किया जाना है।
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अगड़ों, पिछड़ों और दलितों को सहेजने के लिए मुहिम शुरू कर दी है। बूथ स्तर पर बनाई जा रही समितियों में सामाजिक संतुलन साधने का नारा देकर भाजपा उस बूथ की सर्वाधिक आबादी वाली जातियों को प्रतिनिधित्व दे रही है। इसके साथ ही संगठन की ऊपर की इकाई में भी मंडल, जिला, क्षेत्र और प्रदेश तथा फ्रंटल संगठनों में भी इसी क्रम से समायोजन हुआ है। विभिन्न आयोगों में दलितों और पिछड़ों की भागीदारी सुनिश्चित करने पर जोर है जबकि निकायों में पार्षद नामित करने के लिए भी संगठन से नाम मांगे गये हैं। भाजपा यह समीकरण साधने में सभी दलों से आगे है। सबसे खास बात यह है कि हर जिले से सौ-सौ सक्रिय कार्यकर्ताओं के नाम मांगे गये हैं। शर्त भी लगाई गयी है कि जो भी नाम भेजे जाएं उन पर समन्वय समिति का बहुमत हो। इसके लिए जिलों में समन्वय समिति की बैठकों में नामों पर चर्चा भी शुरू हो गई है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने सभी वर्गों के साथ अलग-अलग बैठकें भी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सभी समाज के प्रमुख नेता और विधायक मिल रहे हैं और उनके लिए योजनाएं भी शुरू की जा रही हैं। बानगी के तौर प्रजापति समाज के लिए माटी कला बोर्ड का गठन तो विश्वकर्मा समाज के लिए भी योजना लागू की गई हैं। भाजपा का सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने कुर्मी, पटेल, सैंथवार आदि जातियों को सहेजने में सक्रिय है।