बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस की सियासी जरूरत बने लालू प्रसाद

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(DJ)

बिहार में बदले राजनीतिक हालात ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को कांग्रेस की सियासी जरूरत बना दिया है। नीतीश कुमार के महागठबंधन से नाता तोड़कर भाजपा से हाथ मिलाने के बाद तो कांग्रेस और भी राजद के करीब आ गई है, हालांकि कांग्रेस के कुछ विधायक इसका विरोध कर रहे हैं। आलाकमान को भी राजद के साथ के महत्व का एहसास है, तभी तो लालू प्रसाद के साथ मंच शेयर करने तक से परहेज करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ कह दिया है कि वह राजद सुप्रीमो का साथ नहीं छोड़ सकते।
राहुल गांधी ने हमेशा लालू प्रसाद की तुलना में नीतीश कुमार को तरजीह दी। नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिला लेने के बाद उनका मन बदला। फिर भी उन्होंने 27 अगस्त को गांधी मैदान में आयोजित लालू प्रसाद की रैली में आने से परहेज किया। मगर इस बड़ी रैली में शामिल हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की इस बात से वे सहमत हैं कि भाजपा के खिलाफ किसी मोर्चा के परिकल्पना लालू प्रसाद को अलग कर नहीं की जा सकती। वहीं, बिहार में भी पार्टी को आगे बढऩे के लिए एक बड़े जनाधार वाले दल की आवश्यकता है।

2015 में कांग्रेस ने जदयू और राजद के साथ मिलकर 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीती थीं। 2010 में कांग्रेस अकेले सभी 243 सीटों पर लड़ी मगर मात्र चार सीटें ही जीत पाई। 2015 में बने महागठबंधन में कांग्रेस के हिस्से में अधिकांश शहरी सीटें आई थीं और इसने जदयू और राजद की मदद से बेहतर प्रदर्शन किया था। अगले चुनाव में इसका मुकाबला जदयू और भाजपा से होगा और इसे राजद जैसे किसी मजबूत सहयोगी की आवश्यकता होगी।

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