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भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड ने पहली बार देश की निजी मालिकाना वाली वाणिज्यिक खदानों से कोयला खरीदना शुरू किया है। अब तक एनटीपीसी सरकार द्वारा संचालित कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) से ही घरेलू कोयला खरीदती थी, जो दीर्घावधि ईंध आपूर्ति समझौते (एफएसए) के तहत खरीदा जाता था। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि एनटीपीसी ने पिछले 6 महीनों में निजी खनन कंपनियों से 30 लाख टन कोयला खरीदने के लिए टेंडर जारी किया है और इसकी आपूर्ति पहले ही शुरू हो चुकी है।
कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम वाणिज्यिक खदानों से कोयला प्राप्त कर रहे हैं। इन खदानों से सीधे हमारे संयंत्र को कोयले की आपूर्ति की जा रही है। यह टेंडर एनटीपीसी की नॉन पिटहेड बिजली सयंत्रों के लिए था।’ नॉन पिटहेड संयंत्र कोयला खदानों से 500 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर होते हैं, जबकि पिटहेड बिजली संयंत्र खदानों के नजदीक होते हैं। अधिकारियों ने कहा कि कोल इंडिया के कोयले की तुलना में निजी वाणिज्यिक खदानों से कोयला खरीदना थोड़ा महंगा है, लेकिन आयातित कोयले से सस्ता है।
सीआईएल से कोयला लेने के अलावा एनटीपीसी उच्च गुणवत्ता वाले कोयले का आयात भी करती है। खासकर यह आयात इंडोनेशिया से होता है। इसे घरेलू कोयले में मिलाया जाता है और सीआईएल से मिलने वाले कोयले की कमी होने पर उसकी भरपाई हो जाती है। एनटीपीसी की कोयले की कुल मांग में आयातित कोयला 8 से 10 प्रतिशत होता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमने लक्ष्य रखा है कि जल्द ही आयातित कोयले की जगह हम घरेलू वाणिज्यिक कोयला खरीदने लगेंगे। हमने निकट भविष्य में कोयले का आयात शून्य करने का लक्ष्य रखा है। एनटीपीसी इस समय बिजली उत्पादन की पूरी लागत का बोझ बिजली आपूर्ति की दर पर डालती है। कंपनी के अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि कुल मिलाकर लागत पर इसका असर मामूली होगा।
अधिकारी ने कहा, ‘इन निजी खदानों से कोयला सीधे हमारे संयंत्रों तक पहुंचाया जा रहा है। यह सीआईएल के कोयले की आपूर्ति से इतर है, जिसे आमतौर पर रेल साइडिंग से उठाना पड़ता है। इसके लिए हमें अक्सर सड़क मार्ग से ढुलाई का सहारा लेना पड़ता है। वाणिज्यिक कोयले बढ़ी लागत में ढुलाई का खर्च भी शामिल है,जिसका वहन खनन कंपनी करती है। सीधी डिलिवरी, लागत के हिसाब से भी सही है और पर्यावरण के हिसाब से भी सही है।’