(DJ)
राजनीति गर्माने वाले सुप्रीम कोर्ट के एससी एसटी फैसले में सुधार के लिए गुरुवार को सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन कोर्ट नहीं पसीजा। सरकार ने न सिर्फ दलीलें देते हुए उस फैसले पर रोक की मांग की जिसमें एससी एसटी कानून के तहत भी तत्काल एफआइआर और गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। बल्कि परोक्ष आरोप लगाते हुए यहां तक कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण ही कुछ लोगों की जानें भी गईं। लेकिन कोर्ट अपने फैसले पर अडिग भी रही और तत्काल तर्क देने से भी नहीं चूका। बल्कि सीधा जवाब दिया – ‘फैसला किसी को अपराध करने को नहीं कहता है।’ मामले पर अब 16 मई को सुनवाई है।
किसी से छिपा नही हैं कि एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक उफान खड़ा हुआ था। विपक्ष की ओर से ठीकरा सरकार के सिर फोड़ा गया था। यह भी आरोप लगाया गया था कि उक्त फैसले के वक्त सरकारी वकील ने प्रभावी तर्क नहीं दिया था। जबकि खुद सरकार की ओर से भी यह जताने में कोई कोताही नहीं हुई कि वह खुद क्षुब्ध है। खुद कानून मंत्री रविशंकर की ओर से कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार को भी पार्टी बनाना चाहिए था ताकि वह अपनी बात रख सके। गुरुवार को जब सुनवाई शुरू हुई तो पिछले पूरे परिदृश्य की झलक भी दिखाई थी। सरकार थोड़ी आक्रामक थी। लेकिन कोर्ट पहले ही तरह ही यह मानने को तैयार नहीं दिखा कि फैसले में कोई चूक हुई है।