चमोली में 7 फरवरी, 2021, को आयी भीषण आपदा ने 2013 की केदारनाथ की त्रासदी की याद ताजा कर दी है। पैंग गांव से लेकर तपोवन के एन.टी.पी.सी के बैराज के आसपास कमोवेश केदारनाथ जैसे हालात नजर आ रहे हैं। यहाँ भी केदारनाथ की तरह ही नदी की बाढ़ में लोग लापता हुए हैं। आई.टी.बी.पी., सेना और एन.डी.आर.एफ. समेत स्थानीय स्तर पर राहत एवं बचाव कार्य जारी हैं। कई लोगों को अलग-अलग स्थानों से सकुशल रेस्क्यू भी कर लिया गया है। केदारनाथ में मंदाकिनी की एक छोटी धारा की तरह यहाँ भी ऋषिगंगा नदी की एक धारा इस पूरी त्रासदी की वाहक बनी।
ऋषिगंगा नदी भी मंदाकिनी नदी की तरह ही हिमाच्छादित पर्वत और उनसे निकले ग्लेशियरों से रिसे पानी को संग्रह करते हुए नदी का स्वरूप पाती है। ऋषिगंगा के जलग्रहण में मंदाकिनी नदी से ज्यादा ग्लेशियर और हिमशिखर हैं। मोटे रूप से देखे तो इसमें देश की सबसे ऊंची चोटियों में सुमार नन्दादेवी से लेकर मृगथूनी, कालका, द्रोणागिरी, त्रिशूल और देवस्थानम जैसी लगभग एक दर्जन से ज्यादा नामी बर्फीली चोटियों है और उससे निकली लगभग इतनी ही बड़ी-बड़ी हिमानियाँ हैं जिनके जल के प्रवाह से ऋषिगंगा का प्रवाह बनता है। आमतौर पर इस नदी में भी अन्य बर्फीली नदियों की तरह सर्दियों में पानी का प्रवाह काफी कम रहता है जिससे इसे आसानी से आर पार भी कर लिया जाता है।
कुछ पल के लिए हुई ऋषिगंगा की इस उग्रता की ठीक-ठीक जानकारी आने वाले दिनों में ही साफ हो पायेगी। लेकिन एक बात स्पष्ट है की ऋषिगंगा के उपरी जलागम क्षेत्र में मौजूद हिमशिखर और ग्लेशियरों में कुछ न कुछ हलचल हुई है जिसने नदी को इस रूप में आने पर मजबूर किया। यह सब किस रूप में हुई? कैसे हुई? यह जानना आवश्यक जिससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं को आपदा बनने से रोकने में मदद मिलेगी। लेकिन यह सब यह इस बारे में ज्यादा विज्ञान सम्मत जानकारी के बाद ही हो पायेगा।
स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार भी इस घटना के लिए ग्लेशियरों के टूटने को बड़ा कारण बता रही है। लेकिन केवल ग्लेशियर ही टूटे? या ग्लेशियरों में मौजूद स्नो लेक का भी इसमें योगदान है? और क्या इनके टूटने से कोई लेक बनी? जिसके टूटने से नदी में यह तूफान आया। नन्दा देवी और उपरी हिमालय में ग्लेशियरों की हलचल पर शोध कर रहे भूगर्भ विज्ञानी डा. नवीन जुयाल का कहना है कि यह आपदा ऋषिगंगा के जलग्रहण क्षेत्र में त्रिसूली पर्वत से निकल रहे नाले से शुरू हुई है। डा. जुयाल इसके घटना के लिए ऋषिगंगा घाटी में रैणी से दो किलोमीटर आगे मिल रहे त्रिसूली नाले के उपरी इलाके के ग्लेशियरों में हुई हलचलों को कारण मानते हैं। एक हफ्ते पहले ही इस क्षेत्र के अध्ययन से लौटे डा. जुयाल का कहना है कि पिछली पाँच फरवरी से इस इलाके के उपरी क्षेत्र में जो ताजी बर्फ गिरी थी और जिसकी मात्रा बहुत ही कम थी पिघलनी शुरू हुई। इससे त्रिसूली नाले की बनावट और कमजोर मिट्टी इस बर्फ के पानी के साथ फिसली होगी। इसके कारण कई स्थानों पर छोटी-छोटी झील बनी होगी जो ऋषिगंगा तक पहुँचते पहुँचते उग्र रूप धारण कर चुकी होगी। यही नहीं, निचले इलाके में बनी परियोजनायें भी इस प्रवाह के अवरोधक बने। जिसने इसकी मारक क्षमता को बढ़ाने का कार्य किया। कई स्थानों पर अवरोध के कारण इनके प्रवाह में साद और मलबे की मात्रा बढ़ने से इस छोटी नदी ने बाढ़ का रूप ले लिया।