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सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अंदेशे के आधार पर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का गला नहीं घोटा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार हुए पांच मानवाधिकारों के मामले की सुनवाई के दौरान की। अदालत ने पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि बृहस्पतिवार तक बढ़ाते हुए कहा कि हम इस मामले को ‘बाज की नजर’ से देखेंगे।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस बात पर जोर दिया है कि यह समझने की जरूरत है कि असहमति का भाव प्रकट करना और कानून व्यवस्था को पलटना अलग चीज है। पीठ के सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सिर्फ अंदेशे के आधार पर किसी की स्वतंत्रता का गला नहीं घोंट सकते।
हमारे संस्थान सिस्टम के खिलाफ किसी तरह के विरोध को झेलने में सक्षम हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम भले ही पसंद न करें लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि असहमति का भाव भी हो सकता है। विरोध करना और गड़बड़ी फैलना व सरकार का तख्ता पलट करना अलग-अलग है।