(DJ)
भाजपा में अगर किसी को अभी भी यह गुमान हो कि खेमेबाजी कर और दबाव बनाकर वह अपने हित साध सकता है तो कर्नाटक उसके लिए चेतावनी है। भाजपा को ‘स्वर्णिम काल’ तक पहुँचाने के लिए हर किसी की भूमिका तय है और उसमें बदलाव का हक केवल नेतृत्व का है। कोई कितना भी ताकतवर हो , पार्टी लक्ष्य के आड़े आना बर्दाश्त नहीं होगा। पिछले दिनों तेज आपसी कलह से जूझ रहे कर्नाटक में संगठन महासचिव बी एल संतोष और मुख्यमंत्री चेहरा बी एस येदियुरप्पा के लोगों पर एक साथ एक्शन लेकर अमित शाह ने यह हमेशा के लिए साफ कर दिया है। यह संदेश इसलिए भी जरूरी था क्योंकि हिमाचल समेत कई अन्य राज्यों में ऐसे नेताओं की भरमार है जो महत्वाकांक्षी हैं।
अगले एक साल में गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव है। लेकिन शाह इसे केवल राज्यों के हिसाब से नहीं बल्कि 2019 लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखते है। यही कारण है शनिवार की रात बैंगलुरू में लिए गए फैसले को पूरे देश मे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए संदेश माना जा रहा है। पार्टी में देर रात लिए गए फैसले में भानुप्रकाश प्रकाश और निर्मल सुराना से प्रदेश उपाध्यक्ष समेत पार्टी की सभी जिम्मेदारी ले लीं। वही किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष एम पी रेणुकाचार्य और प्रवक्ता पैनल में शामिल जी मधुसूदन की भी सभी जिम्मेदारी छीन ली। ध्यान रहे कि भानुप्रकाश और सुराणा संगठन और आरएसएस में ताकतवर माने जाने वाले संगठन महासचिव बी एल संतोष के खास है। बल्कि उन्हें यह जिम्मेदारी ही संतोष के कहने पर मिली थी। जबकि संतोष पर खुद येदियुरप्पा खेमेबाजी का आरोप लगा चुके हैं।