(DJ)
राज्यपालों की कथित दखलंदाजी और राजनीतिक भूमिका को लेकर सामने आ रहे विवादों को विपक्षी दलों ने संसद के मानसून सत्र में बड़ा सियासी मुद्दा बनाने की तैयारी कर ली है। इस मुद्दे को गरमाने के लिए विपक्षी खेमे की ओर से राज्यपाल पद को ही खत्म करने की मांग करने से भी परहेज नहीं किया जाएगा। मणिपुर से लेकर पुड्डुचेरी, पश्चिम बंगाल से लेकर गोवा और त्रिपुरा से लेकर दिल्ली के राजभवन और वहां की सरकारों के बीच जारी खींचतान के वाकयों का हवाला देकर संसद में विपक्ष इसे संघीय ढांचे पर प्रहार बताएगा।
राज्यपालों की भूमिका पर संसद में बहस कराने की विपक्ष की इस रणनीति की ताजा वजह पुड्डुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी की इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सीधा टकराव है। बेदी ने मुख्यमंत्री की जानकारी के बिना ही भाजपा के तीन नेताओं को पुड्डुचेरी विधानसभा का सदस्य मनोनीत कर दिया। वहीं ममता बनर्जी ने केशरीनाथ त्रिपाठी पर उन्हें धमकाने का आरोप लगाया है। विपक्ष का कहना है कि राज्यपालों का यह आचरण उनके संवैधानिक पद की गरिमा के प्रतिकूल ही नहीं संघीय ढांचे को भी कमजोर करता है।
अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले साल सत्ता के लिए हुए राजनीतिक उठापटक में राज्यपालों की भूमिका की मुखर आलोचक रही कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने इस बारे में कहा कि यह साफ तौर पर विपक्षी राज्य सरकारों को अस्थिर करने का भाजपा का सियासी डिजाइन है। मामला केवल इन दोनों राज्यों तक सीमित नहीं रहा बल्कि हाल में मणिपुर और गोवा के चुनाव नतीजों में पीछे रहने के बावजूद भाजपा के अल्पमत को बहुमत में तब्दील करने में राजभवन की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। उनके अनुसार राज्यपालों का यह आचरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र और राज्यों के संबंध को सहकारी संघवाद बनाने की बातों के उलट भी है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी राज्यपालों से जुडे़ विवाद को गंभीर बताते हुए संसद में इस पर बहस की बात कही।