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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भीड़ के भय से उसकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता। कलाकारों की अभिव्यक्ति के अधिकार को बंधक नहीं बनाया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य अपने अधिकारों का मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर खुद से असहमति जताने वालों की बोलने व अभिव्यक्ति की आजादी का ‘दमन’ नहीं कर सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने पश्चिम बंगाल में एक फिल्म ‘भविष्योत्तर भूत’ की स्क्रीनिंग पर पुलिस के पाबंदी लगाने से जुड़े मसले की सुनवाई करते हुए ये कठोर टिप्पणी की।
पीठ ने कलात्मक स्वतंत्रता के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता पर चिंता जताई। पीठ ने कहा, आप खुद को नहीं भा रही फिल्म न देखें, किताब के पन्नों को न पढ़ें और जो आपके कानों को न भाए, वह आवाज न सुनें। लेकिन आप किसी दूसरे की स्वतंत्रता का गला नहीं दबा सकते। शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि कानून-व्यवस्था का हवाला देकर पुलिस थियेटर मालिकों को किसी फिल्म की स्क्रीनिंग से नहीं रोक सकती। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस के इस कृत्य को घातक बताया। साथ ही कहा कि पुलिस नैतिकता की ठेकेदार नहीं है। राज्य अपने अधिकारों का मनमाने तरीके से इस्तेमाल नहीं कर सकता। पीठ ने कहा है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाणित फिल्म को किसी अन्य अथॉरिटी से अनुमति लेने की दरकार नहीं है।