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चमोली में चीनी सैनिकों की घुसपैठ और डोकलाम में भारत-चीन के बीच बढ़ रही तनातनी का असर उत्तराखंड से लगी सीमा पर भी नजर आने लगा है। वर्ष 1962 के युद्ध के बाद यह पहला मौका है कि जब सेना सक्रिय हुई है। सेना के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप (बीईजी) ने पुराने बंकरों की मरम्मत के साथ ही नए बंकरों का निर्माण शुरू कर दिया गया है। भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के कमांडेंट केदार सिंह रावत ने बताया कि सीमा पर हाई अलर्ट है और सुरक्षा के लिए सभी इंतजाम किए जा रहे हैं।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीन यात्रा के बावजूद दोनों देशों के संबंधों में तल्खी बरकरार है। रविवार को चीनी राष्ट्रपति ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को संबोधित करते हुए सेना को हर जंग के लिए तैयार रहने के लिए कहा तो भारतीय सेना भी पूरी तरह सतर्क है। किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सीमाओं पर तैयारी की जा रही है। उत्तराखंड में 345 किलामीटर लंबी सीमा चीन से लगती है। इसमें से 122 किलोमीटर उत्तरकाशी जिले में हैं। समुद्रतल से 3800 से लेकर 4600 मीटर की ऊंचाई पर पडऩे वाला इस शीत मरुस्थल में आइटीबीपी के जवान नौ चौकियों में चौबीसों घंटे निगहबानी कर रहे हैं।
दरअसल वर्ष 1962 से पहले इस इलाके में दो गांव थे जादूंग व नेलांग गांव थे। युद्ध के बाद इन गांवों को विस्थापित कर दिया गया। उस समय सेना ने हर्षिल कारछा, नेलांग के साथ ही कुछ अन्य स्थानों पर बंकर बनाए थे। हालांकि इसके बाद हालात सामान्य रहे। अब एक बार फिर परिस्थितियां बदली हुई लग रही हैं।